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जानिए : क्या है खर या अधिक मास ? कैसे बनता है इस मास का संयोग और क्या है इस मास में पूजा-पाठ का महत्त्व ?

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पंडित कमलेश्वर प्रसाद चमोली। देहरादून: जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी कभी होता है।   यह मास पुरुषोत्तम  मास या अधिक मास अथवा खर मास के नाम से जाना जाता है।
सौरमास सूर्य संक्रांति से आरंभ होता है ।  यह एक खगोल शास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। गढ़वाल, उत्तराखंड में यही सौर मास व वर्ष व्यवहारिक तथा प्रचलित है।
चंद्रमास पूर्णिमा से पूर्णिमा तक नक्षत्र आधारित तिथि प्रदर्शित मास है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 माह के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है।
एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम है।  किन्तु जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी कभी होता है ।
इस बार परुषोत्तम मास 18जुलाई2023से आरंभ होगा जो 16 अगस्त 2023तक (सौर मास) रहेगा।
उत्तराखंड गढ़वाल का श्रावण सौर मास अनुसार 17 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा।
उत्तर प्रदेश राजस्थान आदि मैदानी क्षेत्रों में प्रचलित चंद्रमास अनुसार श्रावण 4 जुलाई 2023से 31अगस्त 2023तक होगा । अधिक मास में पूजा-पाठ जप यज्ञ अनुष्ठान का विशेष महत्व होता है।

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