बेलफल व बेलपत्र का आयुर्वेद एवं वेद-पुराण में विशेष महत्व है। भगवान शिव को बेलफल व बेलपत्र अत्यन्त प्रिय है। सावन मास में शिवलिंग पर बेलफल या बेलपत्र चढ़ाने से विशेष पुण्य व फल की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के अनुसार रविवार और द्वादशी के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
चतुर्मास (Monsoon) में शीत जलवायु के कारण वातदोष प्रकुपित हो जाता है। अम्लीय जल से पित्त भी धीरे-धीरे संचित होने लगता है। हवा की नमी जठराग्नि को मंद कर देती है। सूर्यकिरणों की कमी से जलवायु दूषित हो जाते हैं। यह परिस्थिति अनेक व्याधियों को आमंत्रित करती है। इसलिए इन दिनों में व्रत उपवास व होम-हवनादि को हिन्दू संस्कृति ने विशेष महत्त्व दिया है। इन दिनों में भगवान शिवजी की पूजा में प्रयुक्त होने वाले बिल्वपत्र धार्मिक लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करते हैं। जो कि निम्न प्रकार से है:
बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वफल/बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।
जिस स्थान में बिल्ववृक्षों का घना वन है, वह स्थान काशी के समान पवित्र माना जाता है।
बिल्वपत्र छः मास तक बासी नहीं माना जाता।
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र नही तोड़ना चाहिए।
बिल्वफल का निरन्तर सेवन करने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
घर के आँगन में बिल्ववृक्ष लगाने से घर पापनाशक और यशस्वी होता है। बेल का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है।
बेल के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है।
पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से इन दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों में लाभ होता है।
बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है। बेल के पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है।
कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना पर्याप्त है।
एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते हैं।
संधिवात में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है।
बेलपत्र पानी में डालकर स्नान करने से वायु का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है।
बेलपत्र का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है।
पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है।
तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में ताड़ासन व पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है।
मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बेलफल या बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का चूर्ण खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है।