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Breastfeeding Week: विश्व स्तनपान सप्ताह 1 से 7 अगस्त

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विश्व स्तनपान सप्ताह पूरे वर्ल्ड में 1 अगस्त से 7 अगस्त तक मनाया जाता है।  1 अगस्त से शुरू होकर 7 अगस्त तक यह सप्ताह चलता है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य स्तनपान को बढावा देना है। आज भी breastfeeding को लेकर भिन्न-भिन्न लोगों में भिन्न-भिन्न  प्रकार की भ्रांतियां तथा मिथ्स है। जिसका मुख्य कारण सही जानकारी व जागरूकता की कमी है। स्तनपान को लेकर जरूरी जानकारी, मिक्स एवं भ्रांतियां जान लेना आवश्यक है।

महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. नित्या अपने अनुभव बताती हैं कि पहली बार बनी मांओं में किस प्रकार का डर और अंधविश्वास होता है.

वो बताती हैं- अपने बच्चे को स्तनपान कराने से एक माँ पूरे तौर पर परहेज कर रही थीं. उन्हें डर था कि अपने बच्चों को स्तनपान कराने से उनका स्तन शिथिल हो जाएगा. शुरुआत में तो महिला ने कम दूध के स्राव का बहाना बनाया लेकिन काउंसलिंग के बाद उसने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन पढ़ा था और गलतफहमी के कारण स्तनपान कराने से परहेज कर रही थीं.

डॉ. नित्या कहती हैं, “स्तनपान नहीं बल्कि उम्र और आनुवंशिकी ढीले स्तनों के लिए जिम्मेदार हैं. इसलिए उनके लिए बहुत ही लाभकारी है, अपने बच्चों को स्तनपान कराना.”

उन्होंने बताया कि माँ के दूध का अत्यधिक रिसाव एक स्वाभाविक घटना है. इस पर किसी को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए. हाँ, इसके कारण कपड़ों में दाग और दुर्गंध आ सकती है. इससे बचने के लिए माताएं एक्स्ट्रा अंडरवियर या नर्सिंग ब्रा का इस्तेमाल कर सकती हैं.

  • विश्व स्तनपान सप्ताह पूरे सात दिन मनाया जाता है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण चीजें क्या हैं, जिनका ख़्याल हर नई माँ को अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए ध्यान में रखना चाहिए.

डॉक्टरों के मुताबिक, शिशु के जन्म के बाद से माताओं में तीन चरणों में दूध बनता है.

बच्चे के जन्म के दो से पाँच दिन तक कोलोस्टर्म का स्राव होता है.

जन्म के दूसरे और पांचवें दिन से दूसरे सप्ताह तक ट्रांजिशनल दूध का स्राव होता है

दूसरे या तीसरे सप्ताह से परिपक्व दूध का स्राव होता है.

कोलोस्टर्म और परिपक्व दूध में यही अंतर होता है कि नॉर्मल दूध के मुकाबले कोलोस्टर्म दूध का रंग पीला होता है.

इसमें कोलेस्टेरॉल, न्यूक्लियोसाइड्स और इमयूनोग्लोब्यूलिन जैसे कई एंटीबॉडीज होते हैं जो शिशुओं को किसी भी इन्फेक्शन से बचाकर रखती है.

माँ के दूध में 80 प्रतिशत पानी होता है जबकि सॉलिड फूड 12 फ़ीसदी होता है. इसमें कार्बोहाइड्रट और प्रोटीन भी दो-दो प्रतिशत होते हैं. इसके साथ ही एक निर्धारित मात्र में वो सभी जरूरी माइक्रो-न्यूट्रीएंट्स भी होते हैं जो शिशुओं को पाचन क्रिया में मदद करते हैं.

इसलिए नवजात शिशुओं को जन्म के पहले छह महीने तक सिर्फ माँ के दूध की ही ज़रूरत होती है. कोई दूसरा भोजन नहीं दिया जाता है.

जन्म से दो साल तक स्तनपान शिशुओं के लिए काफी स्वास्थवर्धक होता है.

कामकाजी महिलाएं, जो अकसर दूध को फ्रिज में रखती हैं और भूख लगने पर बच्चों को देती हैं, उन्हें इस मामले में सतर्क रहने की ज़रूरत है.

बच्चों को सीधे फ्रिज से निकालकर ठंडा दूध पिलाने की बजाय उन्हें दूध को सामान्य तापमान तक आने का इंतजार करना चाहिए और जब दूध नॉर्मल हो जाए, तभी बच्चों को दूध देना चाहिए.

शिशुओं के स्तनपान अवधि में माताओं के लिए महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनका ध्यान रखना चाहिए.

  • रोजाना कम से कम 30 मिनट वॉकिंग जैसे सामान्य व्यायाम करें
  • जब भी आपके पास समय हो तो उस समय का इस्तेमाल आप सोने और आराम करने के लिए करें
  • शिशुओं के सोते वक्त माताओं को भी आराम करना चाहिए. इस समय उन्हें किसी और काम में उलझना नहीं चाहिए
  • अपना मन खुश रखें
  • अपनी पसंदीदा चीजें करें
  • दोनों स्तनों से शिशुओं को स्तनपान कराएं

    डाइटीशियन डॉ प्रतिभा बताती हैं कि माताओं को प्रोटीन और वसा को आपने डाइट में शामिल करना चाहिए.

    वो बोलीं, “जब हम वसा की बात करते हैं तो ये पौधों से लेना चाहिए. इसलिए हम इसे वसा कहते हैं और जब हम इसे मांसाहारी खाने से लेते हैं तो उसे वसा नहीं कॉलेस्टेरॉल कहते हैं.”

    स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को उचित मात्रा में प्रोटीन दिन में तीन बार लेना चाहिए.

    इसमें से 90 फ़ीसदी प्रोटीन पौधों से लेना चाहिए जबकि दस प्रतिशत ही मांसाहारी भोजन से लेना चाहिए.

    एक संतुलित डायट भी जरूरी है. विटामिन और खनिज से भरपूर डायट को अपने भोजन का हिस्सा बनाना चाहिए. सब्जी, फल और दलों का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए. ये सभी न्यूनतम आवश्यक चीजें हैं.

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