देहरादून, 22 जुलाई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर उत्तराखंड सरकार ने सरकारी अस्पतालों में अनावश्यक मरीज रेफरल की प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा रुख अपनाया है। इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग ने एक विस्तृत स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी करते हुए रेफरल प्रणाली को पारदर्शी, जवाबदेह और चिकित्सकीय आधार पर संचालित करने के निर्देश दिए हैं।
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि अब बिना ठोस चिकित्सकीय कारण के किसी भी रोगी को जिला और उप-जिला अस्पतालों से उच्च संस्थानों को रेफर नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि “मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि प्रत्येक मरीज को प्राथमिक उपचार और विशेषज्ञ राय जिला स्तर पर ही मिले।”
SOP की मुख्य बातें
विशेषज्ञ की अनुपलब्धता में ही रेफरल: रेफरल तभी किया जाएगा जब अस्पताल में संबंधित विशेषज्ञ मौजूद न हों।
ऑन-ड्यूटी डॉक्टर का निर्णय: रेफरल का निर्णय अस्पताल में तैनात वरिष्ठ डॉक्टर द्वारा किया जाएगा। टेलीफोन या ईमेल से मिली सूचना के आधार पर कोई रेफरल मान्य नहीं होगा।
आपातकाल में छूट: आपात स्थिति में ऑन-ड्यूटी विशेषज्ञ व्हाट्सऐप/कॉल से निर्णय ले सकते हैं, परंतु बाद में उसे दस्तावेज में दर्ज करना अनिवार्य होगा।
कारणों का स्पष्ट उल्लेख: रेफरल फॉर्म में रेफर करने के ठोस कारण, जैसे विशेषज्ञ की कमी या संसाधन की अनुपलब्धता, दर्ज करना होगा।
सीएमओ/सीएमएस होंगे उत्तरदायी: अनावश्यक रेफरल पाए जाने पर संबंधित वरिष्ठ अधिकारी की जवाबदेही तय होगी।
एम्बुलेंस सेवाओं पर सख्त निर्देश
रेफरल की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए 108 एम्बुलेंस सेवाओं और विभागीय एम्बुलेंस के उपयोग को लेकर भी दिशानिर्देश जारी किए गए हैं:
108 एम्बुलेंस का प्रयोग केवल IFT (Inter Facility Transfer) के लिए किया जाएगा।
विभागीय एम्बुलेंस की फिटनेस की समीक्षा की जाएगी।
पुराने वाहनों को शव वाहन के रूप में चिन्हित कर तैनात किया जाएगा।
जिलावार स्थिति और सुधार के निर्देश
वर्तमान में राज्य में 272 “108 एम्बुलेंस”, 244 विभागीय एम्बुलेंस और केवल 10 शव वाहन कार्यरत हैं। कुछ जिलों — जैसे अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पौड़ी और नैनीताल में शव वाहन नहीं हैं। इन जिलों के CMO को तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
सरकार की प्राथमिकता – पारदर्शिता और जवाबदेही
डॉ. आर. राजेश कुमार ने कहा, “यह केवल एक प्रशासकीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि मरीज के हित में एक जरूरी चिकित्सकीय निर्णय है। SOP के सख्त पालन से सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली अधिक सशक्त और जवाबदेह बनेगी।”
स्वास्थ्य विभाग ने सभी MOIC और CMO को SOP का पालन सुनिश्चित कराने और हर रेफरल को विधिवत दस्तावेजीकृत करने के निर्देश दिए हैं।